Sunday, 29 October 2017

श्री हनुमान चालीसा ।

जय श्री राम !! जय श्री राम !! जय श्री राम !!



श्री हनुमान चालीसा

॥दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार


॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥

हाथ बज्र ध्वजा बिराजै
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥

सङ्कर सुवन केसरीनन्दन
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

लाय सञ्जीवन लखन जियाये
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानु
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

सब सुख लहै तुह्मारी सरना
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

आपन तेज सह्मारो आपै
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुह्मारा
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

राम रसायन तुह्मरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुह्मरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त धरई
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥ 

॥दोहा॥

पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप


जय श्री राम !! हर कष्ट को दूर करने वाले हैं हनुमान जी के 12 नाम

जय श्री राम !! जय श्री राम !! जय श्री राम !!


जैसे- राम नाम की महिमा अपरम्पार मानी जाती है. ठीक वैसे ही श्री हनुमान के नाम की महिमा भी अनंत फलदायी मानी गई है, कलियुग में हनुमानजी ही एकमात्र ऐसे देवता है जो बड़ी शीघ्रता से प्रसन्न हो जाते हैं। इनकी आराधना से कुंडली के सभी ग्रह दोष समाप्त होकर व्यक्ति के सौभाग्य का उदय होता है!



हनुमान मंत्र :

श्री हनुमंते नम:
अतुलित बलधामं, हेमशैलाभदेहं।
दनुजवनकृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुण निधानं, वानराणामधीशं।
रघुपतिप्रिय भक्तं, वातजातं नमामि।।

कंठस्थ कर लें हनुमानजी के इन 12 नामों को, दूर होगी हर बाधा

कलियुग में हनुमानजी ही एकमात्र ऐसे देवता है जो बड़ी शीघ्रता से प्रसन्न हो जाते हैं। साधारण पूजा और राम नाम के जाप से भी लोगों को बजरंग बली के दर्शन होने की भी कई कहानियां सुनने को मिलती हैं। इनकी आराधना  से कुंडली के सभी ग्रहदोष समाप्त होकर व्यक्ति के सौभाग्य का उदय होता है। हनुमानजी को प्रसन्न करने और उनके दर्शन करने का एक ऐसा ही सरल उपाय है प्रतिदिन उनके 12 विशेष नामों का स्मरण करना। इस उपाय को सभी राशियों के लोग कर सकते हैं। इससे पवनपुत्र बहुल जल्दी प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। आनन्द रामायण में बताए गए हनुमानजी के ये 12 नाम इस प्रकार हैं

हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भेवत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।

इस छोटी सी स्तुति में भगवान महावीर के 12 नाम हैं। इसके प्रतिदिन नियमित जप से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं तथा शनि की साढ़े साती व ढैय्या का असर समाप्त होता है। यदि इस श्लोक का जप नहीं करना चाहते हैं तो आगे दिए सभी बारह नामों का जप भी कर सकते हैं

1. हनुमान
2. अंजनीसुत
3. वायुपुत्र
4. महाबल
5. रामेष्ट
6. फाल्गुनसखा
7. पिंगाक्ष
8. अमितविक्रम
9. उदधिक्रमण
10. सीताशोकविनाशन
11. लक्षमणप्राणदाता और
12. दशग्रीवदर्पहा

ये है इस स्तुति का अर्थ और स्तुति में दिए गए सभी बारह नाम श्लोक की शुरुआत में ही पहला नाम हनुमान दिया गया है, दूसरा नाम है अंजनीसूनु, तीसरा नाम है वायुपुत्र, चौथा नाम है महाबल, पांचवां नाम है रामेष्ट यानी श्रीराम के प्रिय, छठा नाम है फाल्गुनसुख यानी अर्जुन के मित्र, सातवां नाम है पिंगाक्ष यानी भूरे नेत्रवाले, आठवां नाम है अमितविक्रम, नवां नाम है उदधिक्रमण यानी समुद्र को अतिक्रमण करने वाले, दसवां नाम है सीताशोकविनाशन यानी सीताजी के शोक का नाश करने वाले, ग्याहरवां नाम है लक्ष्मणप्राणदाता यानी लक्ष्मण को संजीवनी बूटी द्वारा जीवित करने वाले और बाहरवां नाम है दशग्रीवदर्पहा यानी रावण के घमंड को दूर करने वाले।इन सभी नामों से हनुमानजी की शक्तियों तथा गुणों का बोध होता है। साथ ही भगवान राम के प्रति उनकी सेवा भक्ति भी स्पष्ट दिखाई देती है। इसी कारण इन नामों के जप से पवनपुत्र बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं।यदि किसी व्यक्ति के जीवन में कठिन समय चल रहा है, कुंडली में किसी प्रकार का ग्रह दोष है, कार्यों में सफलता नहीं मिल पा रही है, घर-परिवार में सुख-शांति नहीं है या किसी प्रकार का भय सता रहा है, बुरे सपने आते हैं, विचारों की पवित्रता भंग हो गई है तो यहां दिए गए हनुमानजी बारह नामों का जप करना चाहिए।

संकटमोचन हनुमान के नामों का किन समस्याओं में कब और कैसे स्मरण करना चाहिए...

दीर्घायु पाने के लिए

रोजाना सुबह सोकर उठने के साथ ही बिस्तर पर बैठे-बैठे इन बारह नामों को ग्यारह बार बिना रूके उच्चारण करने से आप दीर्घायु होंगे, इसके अलावा आपके ऊपर आने वाली शारीरिक समस्याओं का भी निदान होगा !

धनवान बने रहने के लिए

हनुमान के इन नामों की महिमा वैसे तो अनंत है, लेकिन दोपहर के समय अपने ऑफिस, घर या दुकान में बैठकर भी इन बारह नामों का स्मरण करने वाले भक्त के जीवन में पैसे की कोई कमी नहीं रहती, इसके अलावा रूका हुआ धन वापस मिलता है और हनुमान के ये बारह नाम कर्ज से भी मुक्ति दिलाते हैं !

खत्म कर देते हैं गृह क्लेश

चाहे स्त्री हो या पुरूष यदि उसके जीवन में पारिवारिक क्लेश रहता है, ऐसे लोग यदि महावीर के इन बारह नामों का जापसंध्याकाल में करते हैं तो उनके परिवार में सुख शांति बनी रहती है !

भय और शत्रु से करते हैं रक्षा

यदि आपके जीवन में ज्ञात-अज्ञात भय बना रहता है या आपके शत्रु आप पर हावी हो रहे हैं तो ऐसे में आपके लिए संजीवनी बूटी का काम करेंगे हनुमान जी के ये बारह नाम ! ऐसे लोगों को रात को सोने से पहले इन बारह नामों का जाप करना चाहिए, हनुमान के इन बारह नामों का नियमित रूप से जाप करने से उनकी कृपा आपके ऊपर रूप विशेष से बनी रहती है !


जय श्री राम !!  जय श्री राम !!  जय श्री राम !!


Thursday, 26 October 2017

शक्तिशाली विष्णु मन्त्र जिसे सुनने मात्र से खुल जायेंगे किस्मत के ताले

इस मंत्र से मिलेगा भगवान विष्णु के हजार नामों के जप का फल



वेदों और पुराणों भगवान विष्णु को श्रृष्टि का पालनहार कहा गया है. मानव जीवन से जुड़े सुख-दुख का चक्र श्री हरिके हाथों में है. भगवान की उपासना में विष्णु सहस्रनाम के पाठ का बहुत महत्व है. इस स्तोत्र में लक्ष्मीपति के एक हजार नाम दिए हैं. अगर आप रोज ये स्त्रोत्र नहीं पढ़ सकते तो जानें विष्णु के हजारों नाम का फल देने वाला मंत्र...इस मंत्र से मिलेगा विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत्र का लाभ:

'नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।'


यह एक श्लोक है, जिस का असर उतना ही है, जितना कि विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत्र का है. रोज सुबह इस एक मंत्र का जाप करने से जीवन में आने वाली कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है.

कनकधारा स्तोत्रम् - Kanakadhara Stotram

कनकधारा   स्तोत्रम् 

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं मकरालयकन्यकाया:।।7।।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यैनमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

श्री सूक्त: - Sri Sukta


श्री सूक्त: 

श्री सूक्त का नित्य पाठ करने से समस्त सुखो की प्राप्ति होती है, श्री सूक्त का पाठ करने वाले को कभी भी धन का अभाव नहीं होता है।

हे माँ लक्ष्मी आप अपने भक्तो की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने की कृपा करें , उन्हें धन, यश, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और कार्यो में श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो। हे माँ आपकी सदा जी जय हो।

श्री सूक्त ऋग्वेद से लिया गया है। शास्त्रो के अनुसार श्री सूक्त का नित्य पाठ करने वाले जातक को इस संसार में समस्त सुखो की प्राप्ति होती है , उसे धन यश की कोई भी कमी नहीं होती है ।श्री सूक्त का पाठ करने वाला जातक को जन्म जन्मान्तर तक भी धन का अभाव नहीं होता है । श्री सूक्त की रचना संस्कृत में हुई है लेकिन आज चूँकि संस्कृत भाषा का चलन नहीं रह गया है अतः अशुद्धियों से बचने के लिए इसका हिंदी में पाठ भी कर सकते है । प्रश्न आपकी श्रद्धा आपके भाव का है । श्री सूक्त का पाठ नित्य करना चाहिए । प्रत्येक शुक्रवार को तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है ।


ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥ 1॥

हे अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी स्वर्ण मिश्रित रजत की माला धारण करने वाली , चाँदी के समान श्वेत पुष्पों की माला धारण करने वाली , चंद्रमा की तरह प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली अथवा चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका शरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाइये।

ॐ तां म आ व ह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं परुषानहम ॥ 2॥

हे अग्निदेव आप मेरे लिए उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै समस्त ऐश्वर्य जैसे स्वर्ण ,गौ, अश्व और पुत्र पौत्रादि को प्राप्त करूँ।

ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनिम ।
श्रियं देविमुप हवये श्रीर्मा देवी जुस्ताम ॥ 3॥

जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं ,ऐसे रथ में बैठी हुई , हथियो की निनाद सम्पूर्ण संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली माँ लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ। ऐसी सबकी आश्रयदाता माता लक्ष्मी मेरे घर में सदैव निवास करे।

ॐ कां सोस्मितां हिरण्य्प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम् ॥ 4॥

जिस देवी का स्वरूप, वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जिसके अधरों पर सदैव मुस्कान रहती है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं। स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली, कमल के ऊपर विराजमान ,कमल के सद्रश गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध धन दात्री माँ लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ।

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुस्टामुदराम्।
तां पद्मिनीमी शरणं प्रपधे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां तवां वृणे ॥ 5॥

चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृट कान्तिवाली , अपनी कीर्ति से देदीप्यमान , स्वर्ग लोक में इन्द्र अउ समस्त देवों से पूजित अत्यंत उदार, दानशीला ,कमल के मध्य रहने वाली ,सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदात्री , जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ। अतः मैं आपका आश्रय लेता हूँ । हे माता आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता नष्ट हो।

ॐ आदित्यवर्णे तप्सोअधि जातो वनस्पतिस्तव व्रक्षोथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्य अलक्ष्मीः॥ 6॥

हे सूर्य के समान कांति वाली देवी आपके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला एक विशेष बिल्ब वृक्ष उत्पन्न हुआ है । उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रदुर्भूतो अस्मि राष्ट्रे अस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ॥ 7॥

हे लक्ष्मी ! देव सखा कुवेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापती की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हो अर्थात इस संसार में धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों। अतः हे लक्ष्मी आप मुझे धन यश और ऐश्वर्य प्रदान करें।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्णुद में गृहात् ॥ 8॥

भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी अलक्ष्मी ( दरिद्रता ) का मैं नाश करता हूँ अर्थात दूर करता हूँ। हे लक्ष्मी आप मेरे घर में अनैश्वर्य, वैभवहीनता तथा धन वृद्धि के प्रतिबंधक विघ्नों को दूर करें।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यापुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम् ॥ 9॥

सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य,किसी से भी न दबने योग्य। धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर समृद्धि देने वाली , समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार में सादर आह्वान करता हूँ।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ 10॥

हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प। वाणी की सत्यता,गौ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध -दधिआदि ) एवं समस्त अन्नों के रूप इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ। सम्पति और यश मुझमे आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
श्रियम वास्य मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ 11॥

"कर्दम "नामक ऋषि -पुत्र से लक्ष्मी प्रकृष्ट पुत्र वाली हुई है। हे कर्दम ! आप मुझमें अच्छी प्रकार से निवास करो अर्थात कर्दम ऋषि की कृपा होने पर लक्ष्मी को मेरे यहाँ रहना ही होगा। हे कर्दम ! केवल यही नहीं अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की माता लक्ष्मी को मेरे घर में निवास कराएं !

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वास्य मे कुले ॥ 12॥

जिस प्रकार कर्दम की संतति 'ख्याति 'से लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार समुद्र मंथन में चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है। इसी लिए कहा गया है कि हे जल के देव वरुण देवता आप मनोहर पदार्थो को उत्पन्न करें। माता लक्ष्मी के आनंद, कर्दम ,चिक्लीत और श्रीत ये चार पुत्र हैं। इनमे 'चिक्लीत ' से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक लक्ष्मी पुत्र ! आप मेरे गृह में निवास करो। केवल तुम ही नहीं वरन दिव्यगुण युक्तसबको आश्रय देने वाली अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ।

आद्रॉ पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पदमालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ॥ 13॥

हे अग्निदेव ! आप मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडग्रा से अभिषिच्यमाना (आद्र शारीर वाली ) पुष्टि को देने वाली अथवा पीतवर्णवाली ,कमल की माला धारण करने वाली , चन्द्रमा के समान सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप, शुभ्र कांति से युक्त स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी को बुलाओ।

आद्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ॥ 14॥

हे अग्निदेव !तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयद्रर्चित अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं, दुष्टो को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (अर्थात 'जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता,उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना भी इस संसार में कोई भी कार्य नहीं चल सकता, अर्थात लक्ष्मी से संपन्न मनुष्य हर तरह से समर्थ हो जाता है) सुन्दर वर्ण वाली एवं सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योअश्र्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥ 15॥

हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन सम्पूर्ण जगत में विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र ना जाएँ बुलाएँ । जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं सुवर्ण , उत्तम ऐश्वर्य ,गौ ,दासी ,घोड़े और पुत्र -पौत्रादि को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करूँ ऐसी लक्ष्मी मेरे घर में निवास करें ।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्॥

जो मनुष्य सुख-समृद्धि अतुल लक्ष्मी कि कामना करता हो ,वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत का हवन और साथ ही श्रीसूक्त कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें।इससे उस पर माँ लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है ।

ॐ शांति: शांति : शांति :

दरिद्रता और दु:ख का नाश करने वाला दारिद्रयदहन शिव स्तोत्र

ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित दारिद्रयदहन शिवस्तोत्र विश्वेशराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय। कर्पूरकान्ति धवलाय जटाधराय दा...